केयू में श्रीमद्भगवद्गीता के सामाजिक सद्भाव विषय पर सेमिनार

कुरुक्षेत्र। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के डॉ. बीआर अंबेडकर अध्ययन केंद्र के तत्वाधान में बुधवार को 7वें अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के तहत विश्वविद्यालय के फैकल्टी लॉज में सेमिनार का आयोजन किया गया जिसमें श्रीमद्भगवद्गीता के सामाजिक सद्भाव के विषय पर विद्वानों ने अपने विचार रखे।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि कुवि के दर्शन विभाग से सेवानिवृत्त प्रो. डॉ. हिम्मत सिंह सिन्हा ने अपने वक्तव्य में गीता के प्रति मार्क्सवादी धारणा का खंडन किया। डॉक्टर सिन्हा ने बताया कि कार्ल मार्क्स संस्कृत के विद्वान नहीं थे तथा उन्होंने गीता की गलत व्याख्या की। उन्होंने गीता को समाज को बांटने के आशय को निराधार बताया। उन्होंने कहा कि गीता में जो वर्ण व्यवस्था बताई गई है उसी प्रकार के वर्ग यूरोपीय समाज में पाए जाते हैं। डॉ. सिन्हा ने ब्रह्म को शब्द से जोड़कर देखने की बात कही, जिसके प्रति समर्पित होना सभी वर्गों का कर्तव्य है। उन्होंने श्रमिक वर्ग की उपयोगिता के विषय में भी बताया जिसे शुद्ध कर्ज नहीं कहा जा सकता। इसके अलावा उन्होंने साम्राज्यवाद इतिहास लेखन की आर्य आक्रमण की धारणा का भी खंडन किया तथा बुद्ध द्वारा दी ब्राह्मण की परिभाषा के विषय में बताया।
इस अवसर पर डॉ. बीआर अंबेडकर के सहायक निदेशक डॉ. प्रीतम सिंह ने डॉ. अम्बेडकर के जीवन की सामाजिक बाधाओं और संघर्ष के विषय में बताया। उन्होंने भारतीय संविधान में स्वतंत्रता समानता बंधुता एवं न्याय के समावेश के प्रति डॉक्टर अंबेडकर का धन्यवाद व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि कुवि का डॉ बीआर अंबेडकर अध्ययन केंद्र इस विचार पद्धति को आगे बढ़ाने के लिए कार्यरत है। उन्होंने गीता को सभी निराशा को दूर करने वाला ग्रंथ बताते हुए गीता को किसी धर्म विशेष की पुस्तक के बजाय सभी धर्मों में सद्भाव पैदा करने वाली पुस्तक बताया। उन्होंने कहा कि गीता में ईश्वर का अस्तित्व सभी जीवों में माना है जो समाज की सभी जातियों एवं वर्गों में मौजूद हैं। इस अवसर पर डॉ प्रीतम सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत एवं परिचय करवाया।
गीता सेमिनार के निदेशक प्रोफेसर तेजेंद्र शर्मा ने गीता को पढ़ने के बजाय गीता को जीने के विषय में बताया। उन्होंने कर्म योग के विषय के बारे में भी बताया। उन्होंने इस सेमिनार के आयोजन के लिए डॉ बीआर अंबेडकर अध्ययन केंद्र का धन्यवाद किया।
डॉ. राजेश्वर मिश्रा ने बताया कि गीता के मूल का सार प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के साथ जुड़ा हुआ है। उन्होंने अर्जुन के विषादग्रस्त होने एवं गीता का ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात अपने कर्तव्य पर लौटने के विषय में बताया। उन्होंने कहा कि ज्ञान, भक्ति एवं कर्म के आधार पर कर्म करना चाहिए। उन्होंने काम, क्रोध राग एवं द्वेष के विषय में बताया कि हमें अपने अहंकार का त्याग कर्म करना चाहिए।
सेमिनार के अति विशिष्ट अतिथि मदन मोहन छाबड़ा ने कहा कि सरकार द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित करने के कार्यों के बारे में बताया। उन्होंने कुरुक्षेत्र के अंतर्राष्ट्रीय गीता के व्यापक स्वरूप को रेखांकित करते हुए श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच के संवाद को रेखांकित करते हुए बताया कि श्री कृष्ण जी की गुरु की भूमिका में और अर्जुन शिष्य की भूमिका में थे। कार्यक्रम के अंत में डॉ. गोपाल प्रसाद, उपनिदेशक डॉ. आंबेडकर केंद्र में आए हुए सभी महानुभावों एवं विद्यार्थियों का धन्यवाद किया। डॉ. गोपाल प्रसाद ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित भी किया।

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